इस वर्ष हिंदी भाषा के 'बाल साहित्य पुरस्कार' के लिए 'क्षमा शर्मा की चुनिंदा बाल कहानियां' कहानी संग्रह को साहित्य अकादमी द्वारा चुना गया है. दिलचस्प है कि पहली बार किसी महिला साहित्यकार की रचना को यह पुरस्कार दिया जा रहा है. तीन दशक से ज्यादा समय तक बाल पत्रिका नंदन से जुड़ी रहीं क्षमा शर्मा लेखन की दुनिया में एक सशक्त हस्ताक्षर हैं. क्षमा शर्मा को विभिन्न मुद्दों पर अपनी लेखनी के लिए इससे पहले भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार समेत कई अन्य सम्मान मिल चुके हैं.
जीवन परिचय
क्षमा शर्मा
माता-पिता : कैला देवी व राम स्नेही शर्मा
जन्मस्थान : आगरा
निवास : दिल्ली
शिक्षा : हिंदी में एमए व साहित्य व पत्रकारिता में जामिया मिलिया इस्लामिया से पीएचडी
प्रमुख रचनाएं : नेम प्लेट, काला कानून, कस्बे की लड़की, घर–घर तथा अन्य कहानियां, थैंक्यू सद्दाम हुसैन, लव स्टोरीज, इक्कीसवीं सदी का लड़का, रास्ता छोड़ो डार्लिंग, लड़की जो देखती पलटकर (कहानी-संग्रह), क्षमा शर्मा की चुनिंदा बाल कहानियां (कहानी संग्रह) आदि.
आगामी उपन्यास : लुच्ची लुगाइयां और आसमान का रंग हरा था
पुरस्कार व सम्मान : साहित्य अकादमी पुरस्कार, भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार, हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा तीन बार पुरस्कृत समेत कई अन्य सम्मान.
बाल साहित्य व महिला मुद्दों पर लेखन के जरिये ख्याति पाने वाली जानीमानी लेखिका व पत्रकार क्षमा शर्मा का जन्म वर्ष 1955 के अक्तूबर माह में आगरा में हुआ था. वर्तमान में वह दिल्ली के मयूर विहार में रहती हैं. क्षमा शर्मा की आगरा से दिल्ली की यह यात्रा कई शहरों से होकर गुजरी, जहां उनका बचपन बीता. चूंकि, इनके पिता राम स्नेही शर्मा रेलवे में नौकरी करते थे, इसलिए पिता के ट्रांसफर की वजह से क्षमा शर्मा को भी अलग-अलग जगहों पर रहने का अवसर मिला. छह भाई-बहनों में सबसे छोटी क्षमा की प्रारंभिक पढ़ाई कन्नौज और फर्रुखाबाद में हुई. उनके सबसे बड़े भाई कॉलेज में पढ़ाते थे और उन्हीं के मार्गदर्शन में सभी भाई-बहनों पठन-पाठन हुआ.
नेशनल बुक ट्रस्ट से प्रकाशित है संग्रह
साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत 'क्षमा शर्मा की चुनिंदा बाल कहानियां' कहानी संग्रह नेशनल बुक ट्रस्ट ऑफ इंडिया से प्रकाशित हुई हैं और इसका पंजाबी अनुवाद भी उपलब्ध है. इससे पूर्व उनकी पुस्तक 'स्त्री का समय' के लिए उन्हें सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था. इनके अलावा हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा उनको तीन बार पुरस्कृत किया जा चुका है. अब तक क्षमा शर्मा के 12 बाल कहानी संग्रह और 17 बाल उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं. उनकी कई कहानियों का रेडियो व दूरदर्शन पर नाट्य रूपातंरण भी हुआ है.
18 वर्ष की उम्र में लिखा था पहला लेख
क्षमा शर्मा द्वारा दिये गये एक इंटरव्यू के मुताबिक, उन्होंने अपना पहला लेख 18 वर्ष की उम्र में लिखा था. इस लेख को उन्होंने एक प्रतिष्ठित समाचारपत्र के पते पर भेज दिया था. कुछ दिनों बाद उनके एक रिश्तेदार ने उन्हें बताया कि उनका लेख प्रकाशित हुआ है. यह एक प्रकार से लेखन की दुनिया में उनका पहला कदम था, जिसने उनको आगे लिखने का आत्मविश्वास दिया. बच्चों के लिए उनकी पहली पुस्तक 'परी खरीदनी थी' वर्ष 1982 में छपी. उसी वर्ष उनकी कहानी संग्रह 'काला कानून' भी प्रकाशित हुई. इसके बाद से लेखन की दुनिया में वे अपने कदम मजबूती से बढ़ाती चली गयीं.
कई भाषाओं में रचनाओं का अनुवाद
इनकी रचनाओं की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इनकी रचनाओं का अनुवाद पंजाबी, उर्दू, अंग्रेजी व तेलुगू जैसी अन्य भाषाओं में भी हुआ है. क्षमा शर्मा 37 वर्षों तक बाल पत्रिका नंदन से संबद्ध रहीं और कार्यकारी संपादक के पद से अवकाश प्राप्ति के बाद इन दिनों स्वतंत्र लेखन कर रही हैं. इसके साथ-साथ क्षमा शर्मा ने टेली फिल्म गांव की बेटी के लिए भी लेखन किया, जो दूरदर्शन पर प्रसारित हुईं. इनके कथा-साहित्य पर विभिन्न विश्वविद्यालयों में छात्र-छात्राएं शोधकार्य भी कर रही हैं. लेखन के साथ-साथ क्षमा शर्मा महिला संगठनों और पत्रकारों की यूनियन में भी सक्रिय रही हैं. इनके अलावा वे दूरदर्शन के राष्ट्रीय पुरस्कारों तथा हरियाण साहित्य अकादमी की जूरी में भी शामिल रही हैं. उनकी यह यात्रा उनके तेजस्विनी लेखिका होने का परिचायक है.
बचपन को संवारने में भी दिया है योगदान
बच्चों के लिए लेखन एक कठिन काम है, क्योंकि इसके लिए रचनाकार को न सिर्फ सरल शब्दों और वाक्यों का चयन करना पड़ता है, बल्कि बचपन के मन को भी टटोलना होता है. अपनी कहानियों क्षमा शर्मा ने बचपन को कई स्तर पर संवारने का भी प्रयास किया है. आज के समय में एकल होते परिवारों में बूढ़े माता-पिता की देखभाल एक दयनीय विषय बन चुका है. अपनी कहानी 'भाई की फरियाद' में क्षमा शर्मा माता-पिता के प्रति कर्तव्य को बड़ी ही मासूमियत और खूबसूरती से पेश करती हैं. जो बच्चों की नींव में संस्कार और भावना से भरने का काम करता है. ऐसी कई अन्य कहानियों के जरिये वह स्त्री को भी सशक्त होने का संदेश देती हैं.
कब से दिया जा रहा बाल साहित्य पुरस्कार
साहित्य अकादमी ने वर्ष 2010 से अपने द्वारा मान्यता प्रदत्त 24 भारतीय भाषाओं में बाल साहित्य को प्रोत्साहित करने हेतु बाल साहित्य पुरस्कार प्रारंभ किया. बाल साहित्य के लिए पुस्तकों का चयन संबंधित भाषा चयन समितियों की अनुशंसाओं के आधार पर किया जाता है. पुरस्कार में एक ताम्रफलक और 50 हजार रुपये की राशि प्रदान की जाती है.
हिन्दी भाषा में अब तक के बाल साहित्य पुरस्कार
वर्ष 2022 : चुनिंदा बाल कहानियां (कहानी संग्रह) : क्षमा शर्मा
वर्ष 2021 : नाटक-नाटक में विज्ञान (नाटक संग्रह) : देवेंद्र मेवाड़ी
वर्ष 2020 : संपूर्ण बाल कविताएं : बालस्वरूप राही
वर्ष 2019 : काचू की टोपी (कहानी) : गोविंद शर्मा
वर्ष 2018 : मेरे मन की बाल कहानियां (कहानी) : दिविक रमेश
वर्ष 2017 : प्यारे भाई रामसहाय (कहानी) : स्वयंप्रकाश
वर्ष 2016 : मटकी मटका मटकैना (उपन्यास) : द्रोणवीर कोहली
वर्ष 2015 : बाल साहित्य के क्षेत्र में समग्र योगदान हेतु शेरजंग गर्ग
वर्ष 2014 : गाएं गीत ज्ञान-विज्ञान के (कविता-संग्रह) : दिनेश चमौला 'शैलेश'
वर्ष 2013 : मेरे प्रिय बालगीत (कविता संग्रह) : रमेश तैलंग
वर्ष 2012 : बाल साहित्य के क्षेत्र में समग्र योगदान हेतु बालशौरि रेड्डी
वर्ष 2011 : बाल साहित्य के क्षेत्र में समग्र योगदान हेतु हरिकृष्ण देवसरे
वर्ष 2010 : एक था ठुनठुनिया (उपन्यास) : प्रकाश मनु
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