भाजपा ने बिहार के दोनों ही सदनों (विधानसभा और विधान परिषद) में अपना नेता यानी नेता प्रतिपक्ष चुन लिया है। भूमिहार जाति से आने वाले विजय कुमार सिन्हा को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष, वहीं, कुशवाहा जाति से आने वाले सम्राट चौधरी को विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है। ये दोनों आदमी सदन में खुद एक-दूसरे से गरमागरम बहस भी कर चुके हैं और सम्राट जी के द्वारा बोला गया 'ज्यादा व्याकुल नहीं होना है' व विजय जी के द्वारा बोला गया 'आपस लीजिए' एक मीम मैटेरियल बन चुका है। भाजपा ने इन्हीं दोनों को प्रतिपक्ष के नेता पद की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंप दी है।
भाजपा का यह मूव बहुत दिलचस्प है। मैंने विजय सिन्हा जी को जितना सुना/जाना है, उस हिसाब से वे मुझे भावुक आदमी लगते हैं। राजनीति में भावुकता का इस्तेमाल नमक की तरह स्वादानुसार हो, तो कमाल हो जाता है, लेकिन यदि उससे ज्यादा हो जाये, तो बवाल हो जाता है। विधानसभा अध्यक्ष रहते हुए विजय सिन्हा जी कई बार अति भावुकता के शिकार रहे, फिर भी भाजपा ने उन्हें नेता प्रतिपक्ष बना कर एक कैलकुलेटेड रिस्क लिया है। क्योंकि, भाजपा अपने कोर वोटर समूह को साफ संदेश देना चाहती है कि आप हमेशा हमारे लिए खास रहेंगे। ऊपर से यदि भावुकता की वजह से कभी सत्ता पक्ष के निशाने पर आये तो उनकी बिरादरी के लोगों की सहानुभूति भाजपा की तरफ बढ़ेगी ही।
वहीं, सम्राट चौधरी बिहार में भाजपा की राजनीति के लिए हर तरह से परफेक्ट नेता साबित हो सकते हैं। उनमें एक अग्रेशन के साथ-साथ राजद और जदयू में रहने का अनुभव भी है। ऊपर से अब तक बिहार में सवर्णों के बाद पिछड़े वर्ग की प्रमुख जातियों में से यादव और कुर्मी को ही सत्ता के शीर्ष तक पहुंचने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, लेकिन कुशवाहा व अन्य अति पिछड़ी जाति अब तक इस मामले में अतृप्त रही है। नीतीश जी इन जातियों को साथ लेकर जरूर चले हैं, लेकिन उनके राजद के साथ रहते उन्हें अपने साथ बचा कर रखना एक बड़ी चुनौती होगी। ऐसे में बीजेपी ने सम्राट चौधरी को जिस उम्मीद से प्रोमोट किया है, उनका वह दांव सफल हो सकता है। हालांकि, इसके लिए भाजपा को बिहार में सांगठनिक स्तर पर भी अपने 'क-मंडल' में छिपे 'मंडल' को उभारना होगा।
इसके साथ-साथ भाजपा के लिए बिहार में सांप्रदायिकता के पिच से दूर रहने में ही भलाई है। यहां उनके पास शाहनवाज हुसैन भी हैं, जिनका उपयोग भाजपा को करना चाहिए। क्योंकि, बिहार... यूपी से बहुत अलग प्रदेश है। यहां न तो अयोध्या है और न ही काशी विश्वनाथ। हाँ यहां, लोकतंत्र की जन्मभूमि, बुद्ध की तपोभूमि, मंडल कमीशन के अध्यक्ष का घर, जगदेव बाबू, कर्पूरी ठाकुर, रामविलास पासवान, लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की विरासत जरूर हैं।
ऐसे में भाजपा को यदि चाचा-भतीजा की जोड़ी को मात देकर बिहार की सत्ता में वापसी करनी है, तो बहुत ही स्पष्टता से राजनीति करनी होगी। इधर-उधर करते रहने से सब धन मिलाकर 22 पसेरी से ज्यादा नहीं हो पायेगा।
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