तस्वीर में लाल घेरे में दिख रहे व्यक्ति बांका के मौजूदा सांसद गिरधारी यादव हैं। इनकी राजनीतिक यात्रा बेहद दिलचस्प रही है। जनता दल की टिकट पर 1995 में कटोरिया से विधायक बने गिरधारी यादव अभी जदयू के सांसद हैं। ये जदयू के उन चंद नेताओं में एक होंगे, जिन्हें लोकल लेवल पर राजद के कार्यकर्ताओं का भी उतना ही स्नेह मिलता है, जितना जदयू के कार्यकर्ताओं का। यही वजह है कि गिरधारी यादव बांका की विभिन्न विधानसभा से चार बार विधायक और बांका से तीसरी बार सांसद बने हैं।
बीते दिनों बिहार में फिर से महागठबंधन बनने के बाद से ही राजद में जयप्रकाश नारायण यादव की चिंता बढ़ गयी होगी, क्योंकि 2014 में जहां वे बांका के सांसद रहे, वहीं 2019 में गिरधारी यादव ने ही उन्हें बांका में मात दी थी।
गिरधारी जी 1996 में पहली बार चक्कर छाप से, 2004 में दूसरी बार लालटेन छाप और 2019 में तीसरी बार तीर छाप पर चुनाव लड़कर संसद पहुंचे हैं। यानी गिरधारी यादव बांका में दलों के निशान पर भी भारी साबित हुए हैं।
जब लालू जी ने 1997 में जनता दल से अलग होकर अपनी पार्टी बनायी तो गिरधारी यादव भी राजद के साथ हो लिये। लेकिन, 1998 में गिरधारी यादव लोकसभा चुनाव हार गये और दिग्विजय सिंह पहली बार बांका के सांसद बने। फिर वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में बांका से राजद ने शकुनि चौधरी जी को अपना उम्मीदवार बना दिया तो गिरधारी यादव और राजद के कोर वोटर दोनों ने पार्टी से बगावत कर दी। नतीजा यह हुआ कि शकुनि जी और गिरधारी जी दोनों को हार मिली और दिग्विजय सिंह मजबूती से चुनाव जीते। दिलचस्प है कि निर्दलीय लड़े गिरधारी यादव को शकुनि चौधरी से ज्यादा वोट मिले।
इसका असर हुआ कि 2000 में गिरधारी यादव को फिर राजद ने कटोरिया से विधानसभा और 2004 में बांका से लोकसभा का टिकट दिया। 2004 में आश्चर्यजनक रूप से दिग्विजय सिंह की हार हुई, जबकि अटल जी की सरकार में रेल को बांका तक पहुंचाने का श्रेय उनको जाता है। सबकुछ ठीक चल रहा था कि वर्ष 2009 में राजद ने गिरधारी यादव का टिकट काट कर जयप्रकाश नारायण यादव को अपना उम्मीदवार बना दिया। उधर जदयू ने दिग्विजय सिंह की जगह दामोदर रावत को अपना उम्मीदवार बनाया, क्योंकि दिग्विजय सिंह तब राज्यसभा के सांसद थे। दिग्विजय सिंह सांसदी छोड़ निर्दलीय लड़ने बांका आ गये, उनके प्रचार के लिए जेएनयू के उनके साथी/पत्रकार/स्वाजातीय लोग भी बड़ी संख्या में बांका पहुंचे थे। संयोग कहिए कि गिरधारी यादव भी लड़ाई में नहीं थे। जिसका सीधा लाभ दिग्विजय सिंह को मिला और वे निर्दलीय बांका से सांसद चुने गये। एनडीए के उम्मीदवार दामोदर रावत तीसरे नंबर पर रहे।
बेलहर से विधायक रहते हुए गिरधारी यादव की नजर बांका पर बनी रही, आखिरकार बांका से 2019 में वे तीसरी बार सदन पहुंच गये। इनकी सादगी के बारे में अभिषेक रंजन सिंह भैया बता रहे थे कि सांसद बनने के बाद भी एक दफा ऑटो में चलकर उनके पास मिलने पहुंचे थे। अभिषेक भैया कहते हैं कि "मुझे याद है 2012 में चौथी दुनिया ऑफिस, जो नोएडा सेक्टर 11 में है, सेक्टर 15 मेट्रो स्टेशन से उतरकर विक्रम ऑटो से 10 रुपया देकर सेक्टर 11 मेरे ऑफिस आये थे। उनके इलाके में कोई डैम था, उसी से संबंधित ख़बर के लिए कुछ दस्तावेज देने आये थे।"
दिलचस्प फैक्ट यह है कि बांका से अधिकतम तीन दफा चुनाव जीत कर सदन पहुंचने का मौका सिर्फ दिग्विजय सिंह और गिरधारी यादव को ही मिला है। इनके अलावा मधु लिमये, चन्द्रशेखर सिंह, मनोरमा जी, प्रताप सिंह को दो-दो दफे चुनाव जीत कर सदन पहुंचने का मौका मिला।
अब देखना होगा कि 2024 में जयप्रकाश नारायण यादव और गिरधारी यादव में किसका मौका बनता है?
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